Saturday, September 2, 2023

Love is a Revolution, Love is Liberation

                                             Love is a Revolution, Love is Liberation

02.09.23


Love is interpreted by philosophers with different variations

Love is romanticized by the poets, who have their own narration

Love is painted in the movies in restricted dimensions

Love is confined by the television in a limited description

Love is hijacked by the greedy market forces for their vested interest to manipulate and twist information

Love is reduced to bundles of superficial honour, narrow nationalism, and patriotism by power-hungry politicians

Love is divided by the narrow concept of caste, territory, and religion and by paternalist notions

But amidst all this chaos, the way I understood, love is a rebellion,

Love is a revolution; Love is liberation

 

Love is the mutiny, not confined by the individualist expression or emotions

Love could not be restricted to profit or loss calculations

Love awakens the conscience and enables one to think beyond egoistic transactions

Love is not supremacy, prejudices, superstitions, or preconceptions

but love is a powerful expression that challenges all such delusions

Love is an expression that transcends the boundaries of territories, caste, class, or religion

Love is not about seeking the divine in temples; it is about admiring nature and all its creations

Love is harmony with nature, and preserving all natural species on the verge of extinction

Love is rationality, wisdom and life’s celebration. 

Love is a quest for justice, Love is about freedom and self-determination

 

In normal times,

Love is the grit of a mother teaching her daughter to dream and break age-old traditions

Love is the act of a father supporting his daughter to fulfill her aspirations

Love is the revolt of a lover who breaks all conservative traditions

Love is about shattering all stereotypical conventional illusions

Love is in the revolt of the citizen, demanding her entitlements and just solutions

Love is the roar of a worker who agitates against exploitation

Love is shattering the narrow walls of limiting traditions

Love is a brave act of demanding the elimination of poverty, starvation, excesses, and immoderation 

 

In the dark times,

Love is bending, molding, and transforming all unjust institutions

Love is challenging all forms of discrimination

In the times of repression, love is a pedagogy of revolution 

Love is exposing the lies of those in power; it is an act of standing resilient against injustice and oppression

Love is an act of documenting the history of brutalities, violence and suppression

Love is speaking against all forms of subjugation

 

In times of hatred,

Love is bravery and courage to tell the truth with conviction   

Love is testifying against the realities of tyrannies and domination

Love is seeking justice, righting wrongs, and reclaiming the spirit of the Constitution

Love is a sparkle of hope amidst all chaotic and absurd situations

Love is grit and resilience in times of autocracy and dominion

Love is countering misogyny, sexism, hate and detestation

Love is standing against all the gruesome hatred and division

 

In short.

Love is solidarity, a collective, imagining an alternative world founded on humane values, kindness and compassion.

Love is writing poems and stories in times of despair and depression

Love is singing songs of resistance and contestation

Love is a celebration of peace, justice, passion and collaboration

Love is creating a better world for future generations

Love is imagining a world free of treachery, cruelty and suppression

Love is dreaming of a world where crime against humanity has no place, there are no superficial separations

Love is a revolution; Love is liberation

 

The author is an activist, lawyer and a researcher working on gender, human rights, law and governance issues. Her latest books are Dowry is a Serious Economic Violence; Rethinking Dowry Law in India 2023; Domestic Violence Law in India: Myth and Misogyny, 2021 Routledge; Women and Domestic Violence India: A Quest for Justice, Routledge 2019; The Founding Mothers: 15 Women Architect of the Indian Constitution, 2016, co-author). She is a Tedx speaker.

 

https://countercurrents.org/2023/09/love-is-a-revolution-love-is-liberation/ 


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Monday, January 9, 2023

जब घूंघट बना परचम इंक़लाब का: हिजाब, नारीवाद और निरंकुशता

 

जब घूंघट बना परचम इंक़लाब का: हिजाब, नारीवाद और निरंकुशता


09 Jan 2023




सदियों से पुरुष प्रधान समाज महिलाओं पर विभिन्न प्रकार की रोक लगाता जा रहा है - कभी पहनावे को लेकर, कभी आने जाने पर, कभी पढ़ाई या काम करने पर रोक को लेकर। हर बार पुरुष यह तय करते हैं कि महिलाओं को क्या पहनना चाहिएकैसे रहना चाहिए, कहाँ जाना चाहिए, कब या किस से विवाह करें इत्यादि, यह गलत है। जब धर्म, समाज और सरकारें, सब मिलकर महिलाओं को जंजीरों में बांधने पर तुले हैं और उन पर तरह-तरह से प्रतिबंध लगा रहे हैं, तब महिलाएं उन जंजीरों को तोड़ रहीं हैं और क्रांति के नए रास्ते बना रहीं हैं। और अब फिर से एक बार हिजाब को राजनीतिक हथियार बनाया जा रहा है । हाल ही में हिजाब को लेकर कई निरंकुश सरकारें महिलाओं पर प्रतिबंध लगा रहीं हैं और अब इसे लेकर एक क्रांति हो रही है, जब घूंघट या हिजाब बन रहा है परचम इंक़लाब का। 

तानाशाही के विरुद्ध क्रांति की लहरें


ईरान की कुख्यात "नैतिक पुलिस" द्वारा तेहरान में गिरफ्तार किए जाने के बाद मारी गई एक 22 साल की युवती महसा अमिनी की मौत के विरोध में ईरानी महिलाएं अपने हिजाब जला रही हैं और अपने बाल कटवा रही हैं। 

अमिनी की मौत पर चल रहे विरोध प्रदर्शनों पर पुलिस की प्रतिक्रिया नृशंस है। विरोध प्रदर्शनों में पूरे ईरान में कई लोगों के मारे जाने की ख़बर है।

जब ईरान की सरकार ड्रेस-कोड कानून लागू कर रही है, वो भी प्रतिबंधों की एक नई सूची के साथ, तब महिलाओं के नेतृत्व में आंदोलन हो रहा है, जो इस क्रांतिकारी कार्य को कर रही हैं। वे सशस्त्र नहीं हैं। यह आंदोलन पूरी तरह शांतिपूर्ण है। इस क्रांति का केंद्रीय नारा है "नारी, जीवन, स्वतंत्रता।" इस क्रांतिकारी आंदोलन का मूल, महिलाओं की शारीरिक स्वायत्तता को पुनः प्राप्त करना है। यह आंदोलन नेतृत्वविहीन है, इसका कोई एक नेता नहीं है और यह इसकी ताकत का एक बिंदु है। 

अफगानिस्तान में भी महिलाएं इसी मुद्दे पर तालिबान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रही हैं। पिछले साल तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद से, अफगानिस्तान के कई प्रांतों में किशोर लड़कियां स्कूल में जाने में असमर्थ हैं। इसके अतिरिक्त, मंत्रालयों और निदेशालयों ने अधिकांश महिलाओं को उनकी सरकारी नौकरियों में लौटने से रोक दिया गया है। अफगानिस्तान की महिलाएं इस समय बुनियादी चीजें मांगने में व्यस्त हैं जैसे लड़कियों के लिए शिक्षा का अधिकार, महिलाओं के लिए काम करने का अधिकार, बिना किसी डर के यात्रा करने का अधिकार। जब तालिबान ने घोषणा की कि सभी महिलाओं को अपने चेहरे को ढंकना चाहिए या तो पूरे काले अरब शैली के नकाब में या स्थानीय नीली चादर में, या बुर्का पहनना चाहिए, तो महिलाओं ने विरोध किया, जिसे तालिबान ने रोकने का प्रयास किया। लेकिन महिलाएं तालिबान की क्रूर ताकत के समक्ष खुद को अभिव्यक्त करने से नहीं रोक सकीं और तब क्रांति का सिलसिला आरम्भ हुआ। ये सभी महिलाएं विरोध कर रहीं हैं हिजाब और अन्य रूढ़िवादी तरीकों का, उन निरंकुश सरकारों के खिलाफ, जो महिलाओं के पहनावे पर अपनी संकुचित सोच लाद रहें हैं और महिलाओं को पढ़ने और काम करने से रोक रहें हैं। 

पर भारत जो एक धर्मनिरपेक्ष देश है, यहां लड़कियों ने 2022 में सरकार के विरुद्ध इसलिए प्रदर्शन किया क्यूंकि वो हिजाब पहन के पढ़ना चाहती थी। 5 फरवरी 2022 को, कर्नाटक राज्य सरकार ने एक कॉलेज में हिजाब पहनने पर रोक लगाने वाला एक परिपत्र जारी किया। कई लड़कियों ने इस आदेश को कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी। 15 मार्च 2022 को तीन जजों की बेंच ने फैसला सुनाया कि इस्लाम के तहत हिजाब पहनने की जरूरी प्रथा नहीं है। अदालत ने लड़कियों को उनकी पसंद के कपड़े पहनने के लिए दंडित करते हुए लड़कियों के शिक्षा के अधिकार की तुलना में 'वर्दी में एकरूपता' को प्राथमिकता दी। 

जब बहस मेंमहिलाओं के शिक्षा के अधिकार के बजाय धार्मिकता पर ध्यान केंद्रित किया गया। 

एकरूपता की इच्छा व्यक्त की, लेकिन ड्रेस कोड को अचानक लागू करने के बारे में बहुत कम कहा गया। याचिकाकर्ताओं ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। अक्टूबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस हेमंत गुप्ता और सुधांशु धूलिया ने शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध से संबंधित एक मामले में अलग-अलग फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति गुप्ता ने उच्च न्यायालय प्रतिबंध को बरकरार रखा और सभी अपीलों को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति धूलिया ने सभी अपीलों को स्वीकार कर लिया, कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया। अब ये मामला चीफ जस्टिस के समक्ष लंबित है।

परन्तु न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि "एक विद्यालय द्वारा छात्रा को उसके स्कूल के गेट पर हिजाब उतारने के लिए कहना, उसकी निजता और गरिमा पर आक्रमण है" और मौलिक अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन है। यह भी तर्क दिया कि इस मामले में सबसे बड़ी चिंता लड़कियों की शिक्षा है, उन्होंने कहा : “एक बालिका को शिक्षा प्राप्त करने में एक लड़के की तुलना में कई गुना अधिक बाधाएँ और कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती हैं। इसलिए इस मामले को एक बालिका के सामने अपने स्कूल तक पहुँचने में आने वाली चुनौतियों के परिप्रेक्ष्य में भी देखा जाना चाहिए। इसलिए यह अदालत खुद के सामने यह सवाल रखेगी कि क्या हम केवल हिजाब पहनने के कारण लड़कियों को शिक्षा से वंचित करके उनके जीवन को बेहतर बना रहे हैं!” 

भारत में, हिजाब से सम्बंधित बहस को देश के सांप्रदायिक इतिहास और अल्पसंख्यक राजनीति में मुस्लिम other "अन्य" की छवि को लेकर चल रहे विवाद के संदर्भ में समझा जाना चाहिए। मुसलमानों के प्रति निराशा और शत्रुता को परिधान के विरुद्ध आसानी से चैनल किया गया। हिजाब विरोध के बाद सरकारी शिक्षण केंद्रों में अल्पसंख्यक छात्रों की संख्या में 50% से अधिक की गिरावट दर्ज की गयी। 

संक्षेप में कहा जा सकता है की प्रत्येक देश में घूंघट या हिजाब के बारे में प्रदर्शनों को समझने की कोशिश करते समय वहां के विशिष्ट ऐतिहासिक और सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ जानने महत्वपूर्ण होते हैं। बेशक, हिजाब पोशाक का एक प्रकार माना जा सकता है। फिर भी, इस्लाम से जुड़े होने के कारण, इस पर लंबे समय से एक राजनीतिक बहस छिड़ी है। हिजाब का प्रयोग राजनीतिक और सामाजिक दमन के रूप में किया जा रहा है। अलग-अलग देशों में निरंकुश सरकारें या शासन, विभिन्न प्रकार से हिजाब को हथियार बना कर महिलाओं के अधिकारों में हस्तक्षेप कर रहें है। 

महिलाओं की स्वायत्तता (women's autonomy) अनिवार्य है

चाहे ईरान हो, अफगानिस्तान या भारत, सवाल यह नहीं है कि कोई हिजाब के पक्ष में है या उसके खिलाफ। सवाल यह है कि कैसे शासन महिलाओं के अस्तित्व और शरीर को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं और यह तय करने की कोशिश करते हैं कि महिलाओं को अपना जीवन कैसे जीना चाहिए। प्रगतिशील समाजों और मानव अधिकारों के मूल्यों के अनुसार यह महिलाओं की पसंद है कि वह तय करें कि उन्हें क्या पहनना है और क्या नहीं पहनना है। इसलिए हिजाब के मामलों में आंदोलन महिलाओं के अधिकार के बारे में है। इन क्रांतिकारी आंदोलनों का मूल, महिलाओं की स्वायत्तता autonomy के बारे में है। 

समस्या घूंघट या हिजाब नहीं है, लेकिन कानून के जबरदस्ती लागू करने में निहित है। महिला नागरिकों को स्वायत्तता के उनके मूल अधिकार से वंचित करने के लिए इसे धर्म के साथ जोड़ दिया गया है। 

धर्म के नाम पर महिलाओं को घूंघट या हिजाब पर कोई भी फैसला धार्मिक कट्टरवाद के संकेत के रूप में देखा जाना चाहिए। इसका प्रयोजन रूढ़िवादी सोच को बढ़ाना और विकास को पीछे धकेलना है। संक्षेप में, कानून एक नागरिक को उसके धर्म और उसके अधिकारों के बीच चयन करने के लिए मजबूर कर रहा है। 

सभी जगह निरंकुशता के उदय के साथ, नारीवाद का एक अलग रूप उभर रहा है, जहां भारत में मुस्लिम लड़कियां और अफगानिस्तान, ईरान वे अन्य देशों में महिलाएं अपने अधिकारों और स्वायत्तता को प्राप्त करने के लिए सरकारों को चुनौती दे रही हैं। महिलाएं, जहाँ भी हों, बंधनों को तोड़ कर आगे बढ़ रहीं हैं, पितृसत्ता को लगातार चुनौती दे रहीं हैं और उसे नष्ट कर रही हैं। इस प्रक्रिया में घूंघट या हिजाब क्रांति के प्रतीक के रूप में उभर रहा है। 

सभी महिलाओं की डिमांड है कि नागरिक के रूप में उन्हें 'बचाने' के लिए पितृसत्तात्मक हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है, बल्कि उनकी आवाज़, उनका अस्तित्व और एजेंसी agency को पहचानने की आवश्यकता है। 

बेखौफ आजादी - ये सब महिलाओं की मांग है - आजादी अपने फैसले खुद लेने की, आज़ादी बेख़ौफ़ रहने की, पढ़ने की, काम करने की, आज़ादी खुली हवा में सांस लेने की, और आजादी सपने देखने और उन्हें पूरा करने की।

एडवोकेट डॉ शालू निगम

लेखिका सामाजिक कार्यकर्ता, अधिवक्ता व स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।


https://www.hastakshep.com/hijab-feminism-and-autocracy/

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Monday, July 28, 2014

Yes, I Am a Woman…..

By Shalu Nigam

28 July, 2014
Countercurrents.org

https://www.countercurrents.org/nigam280714.htm




On the occasion of this Independence Day, I continue to fight for my independence as a common woman, as a citizen of this free nation and more importantly as a human being…

Yes, I am a woman and I am proud of myself. I am strong and I am growing stronger by each passing moment. I am an independent, fearless, free thinking woman making choices at every step reaffirming my pride, contesting for my dignity and in the process shaping and writing my own destiny….

I am the one with vision you see carrying bricks on construction sites...

I am a woman toiling in an agriculture field awaiting for the crop of my imagination to be harvested...

I am a worker working in a textile organization weaving my hopes in the garments I knit…

I am a student with dreams in my eyes, cycling or running after buses…

I am a scientist inventing and imagining, an architect, shaping and cementing the foundations of the new India carving it out from the old…

I am an office goer craving to fulfill my aspirations you can see in a train or a metro…

I am a teacher with a desire to inspire the future generation…

I am a health worker continuously striving to create a healthy India…

I am an engineer with a conviction of building a bright future…

I am a house worker carrying out loads of work with thoughts of sending my daughters to the moon…

I am a woman with courage walking with a pitcher in village carrying water to miles…

I am a woman with hope and optimism cooking food, cleaning house, managing farms, factories and corporate offices….

Because I am a dreamer, believer, creator and a doer ….

I may not be having a fair, bright skin, long shiny hair or a thin hourglass figure as promoted by corporate and media. I do not believe in all such lies and false standards for I am a real woman and real persons cannot be defined, contained and shaped, labeled or designed, mocked or ridiculed by anyone. I am a common Indian woman who takes pride in herself and choose to believe in myself, my strengths, my qualities, skills and abilities.…

I am a daughter of an independent India and a successor of Gargi, Maitrayee, Razia Sultana, Mirabai, Rani Lakhsmi Bai, Kittur Chennamma, Pandita Ramabai, Sarojini Naidu, Vijay Lakshmi Pandit, Kasturba Gandhi, Aruna Asaf Ali, Raj Kumari Amrita Kaur, Annie Besant, Capt Lakshmi Sehgal, Irom Sharmila Chanu and millions of other women who struggled or are working hard not only against the colonial rulers but also against the hegemony of oppression and exploitation imposed by dominant caste, class and patriarchy, so the coming generations could have a better future. I pledge that efforts of generations of women will not go in vain, that I the descendant of their courage and audacity will strive for justice till I get it….

I have been teased, molested, raped, beaten, murdered, tortured, discriminated against, violated, yet I survived all and rose from ashes like a phoenix, much stronger, much powerful and much tough. Bend me or break me, rape me or kill me, I will not give up. Nothing could destroy my soul or my spirit….

I reside in every Mathura, Bhanwari Devi, Shah Bano, Ammena, Rupan Deol Bajaj, Tarvinder Kaur, Roop Kanwar, Imrana, Gudiya, Soni Suri, Nirbhaya and identify myself as every other girl who is being raped, burned, abducted, brutalized daily in each and every nook and corner of India and yet fought back against perpetrators in some or the other way….

I am not a silent spectator of my brutal violations. I am not a victim, rather I am a survivor. I raise my voice in Parliament, I come out on streets against injustice, I struggle against World Bank, IMF and its Structural Adjustment Programmes, and similar such instruments which played a significant role in `feminization of poverty', I even resist at home and workplace against discrimination and violence, I stand to protect my right to water, to forest, to land, to livelihood and most importantly right to a dignified life. My voice can't be suppressed, restrained or smothered….

I agitated when the Supreme Court of India released the two policemen who raped me, tribal girl inside a police station, I revolted when during 80s the part of me was burned alive for greed, lust and consumerism in the form of dowry, I protested when I was immolated as sati, I dissented against any tradition or practice which tried to kill me before, at or after my birth because I am a girl, I raised my voice against rising the height of the dam which tended to destroy everything in the name of development, I challenged Norplant and any such procedures which denies me of my right to health, I dare to protest as a law intern against a Supreme court judge who molested me, I hugged the tree in forests when my rights to forest were denied, I created a revolution in North East against rape by military and para military forces, I resisted against fundamentalism which showed its ugly face in the form of communal riots, I raised my dissent when those in the judicial fraternity threw my petition on the ground that upper caste men cannot rape a dalit woman, I declared war against those who kidnapped young children at Nithari, I went against my boss, an editor of a magazine who molested me, I initiated anti arrack movement in different places, I struggled to get my right to livelihood, health and education, I stand against acid attacks, I rise against honour killing and witch hunting, I protested when I was raped in a moving bus in Delhi and I screamed at the top of my voice when I was raped and hanged by the tree in Badaun, and I will keep on doing that until I get respect and justice I deserve, I will keep on fighting continuously, for my dignity, my pride, my self- respect, my empowerment, my emancipation ….

I fight against poverty; I struggle against patriarchy – patriarchy which exists within family, at workplace, at public spaces and within mindset; I reject the notion of a deep-rooted, misogynist tradition-fed gender hierarchy - defined, dominated and exploited by few; I challenge free market economic policies and such reforms which take away my rights to peaceful existence; I resist against fundamentalism; I protest against oppression in any form. I voice my concerns for my space, for equality and for equal opportunities….

Born in free India, I strive to realize my constitutional right to dignified life – a life free from discrimination of all kinds. I negotiate to bridge the gap between political ideals and realities. I assert for my lawful rights, claims and entitlements and not ‘welfare programmes or scheme' given as a dole within socio-political arena. I endeavor to lead a life free from violence, right to enjoy privileges including that of water, food, education, health, land and all other amenities essential for civilized living….

I call my family to allow me to be born, and care for me as much they care for their sons, not to discriminate against me, provide me with the opportunity to get health, food and education and not marry me at an early age, not to give or demand dowry, not to inflict violence including incest, because I am powerless in certain situations….

I demand for equality in opportunities at the workplace, a work environment free from any discrimination or workplace violence…

I urge upon the society to give up misogynistic patriarchal attitude that results in violating my dignity and pride and in customs like female foeticide, honour killing, witch hunting, trafficking, buying and selling women as brides….

I am of the view that patriarchy must be abolished. In the independent India, all such practices that are offensive to anyone should be declared illegal and unconstitutional….

I am against capitalistic patriarchy that commodifies women and promote gender stereotypes that discriminate against women. I confront imperialism in its new avatar of globalization and liberalization which has led to increasing restrictions to my space, access to resources, destroyed indigenous skills and knowledge system, harmed the local ecology and devastated local forest, water systems and land.….

I defy all challenges in my way placed by fundamentalist and communal forces to exclude me, deny me visibility, keeping me propertyless and resourceless for vested interests…

I resist against militarization and nuclearization which promote brutal ways of life taking most of the budgetary provisions while denying basics …

I also demand to enact Women's Reservation Bill, enabling policies for single women and laws that strive for fair treatment. I propose to reconsider all the laws that are patriarchal, patrilineal and biased and support implementation of those laws which promote equality….

I insist that all those who opine that women misuse laws against rape or domestic violence law to just think once from a perspective of that woman who is being raped, or has survived violence within the confines of `safety and security' of home or public place; women are being raped in marital relations and in public spaces, tortured, humiliated, brutalized, murdered; the society cannot close its eyes to such incidences that are happening day in and day out. The data and statistics available with the National Crime Record Bureau and other organizations cannot be negated; the incidences reported everyday cannot be overlooked and these are only a tip of an iceberg as many of cases are not even taken to the police stations or courts. The NCRB report 2013 shows that during the year, 309546 cases were reported for crime against women which implies that so many women are being harmed in some way or the other. This is apart from rape cases which were reported as 33707 and dowry deaths cases which were 8083 in number. This data also indicates that 162238 cases were disposed of by the police, where charge sheet has been submitted in 93386 cases, investigation is pending in 50129 cases, final report (true) has been submitted in 7808 cases and only in 10864 (only 6%) cases the charges are found to be false or were treated as the mistake of law in cruelty against women cases. That is when the attitude and mindset generally is gender biased. So where is the misuse of the law? Impunity is only adding to the crime. Please be awake! And listen to those voices screaming for fairness…

I suggest to those who whine that women are abusing laws, that the number of cases are increasing as more and more women are getting aware of their rightful entitlements which have been denied to them for generations. Their voices have been suppressed for decades, but now is the time for REVOLUTION. More and more women are ready to speak up and will be claiming what is theirs!

I would like to tell those who go by the approach that `Boys will be Boys' that this patriarchal ideology to defend the crime only promoted `goondaism'. That even `girls are girls', but are mature, independent and sensible. Now, it is the time for the boys to catch up to be more responsible, wise and prudent… And many have been as depicted in the recent protests on women's rights issues when they join hands with women against violence. I salute them….

I plead all those leaders from politics, religious and other groups, who issue such statements that defy, disregard, disrespect, underestimate and misjudge dignity of women to consider the fact that women are equal citizens and humans; without them the existence of life will not be possible....

I hope that the State will ensure that half of the country's population be treated with respect as equal citizens and will receive justice in all forms – social, economic, political…

I argue that personal is political. There should not be private women sphere and public men space as asserted by patriarchy, as everything I do in personal sphere has effect on political arena...

Further, I believe, I am a change. Change begins with me. I resist, therefore I exist. I critically examine myself every day, every moment….

You may call me a family breaker but I am not against the institution of family; rather I fight against patriarchy and inequality within the family; I am not against religion but I combat communalism; I am not against indigenous culture however I resist patriarchy, sexism, discriminatory, stereotypical and misogynistic attitude; I am not striving for equality with men nevertheless I want to be an equal partner taking decisions in creating a society free from violence or discrimination. I am working to empower and emancipate myself. More than being ideological, my struggle is pragmatic….

Yes, I am a feminist and an activist and I take pride in it. No, I do not shy away from my identity which has given me an understanding to fight for my rights, to strive for justice, to struggle for freedom and endeavor for my self-respect. I dare to exhibit courage, confidence, audacity, till women in this country truly achieve independence…

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